अयोद्धया राम मंदिर
1992 में, भगवान राम के मंदिर के निर्माण की मांग को लेकर कई हिन्दू संगठनों ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद को तोड़ने का आंदोलन चलाया। इसके परिणामस्वरूप, करीब 150,000 से अधिक कटिबद्ध हिन्दू लोगों ने 6 दिसम्बर 1992 को मस्जिद को तोड़ दिया और वहां श्रीराम मंदिर के निर्माण की तैयारियों का आरंभ हुआ।
इसकी शुरुआत अयोध्या में विवाद के बाद हुई. राम मंदिर का निर्माण केवल और केवल भगवान राम की अद्वितीय दिव्य जन्मभूमि पर ही होना था, जिसे राम जन्मभूमि के नाम से जाना जाता है। राम मंदिर का निर्माण कार्य 5 अगस्त 2020 को शुरू हुआ, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूमि पूजन करते हुए इसकी आधारशिला रखी. मंदिर निर्माण के लिए धन की मांग में भारतीय लोग ही सहयोगी रहे है।
बाबरी मस्जिद विवाद: 1992
बाबरी मस्जिद अयोध्या में स्थित थी और इसका निर्माण 16वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर ने कराया था सही शब्दो में कहा जाय तो बाबरी मज़्ज़िद 1528 में राम जन्मस्थान पर इस लिए बनाई थी क्यो की बाबर अपना मुगल साम्राज्य स्थापित कर के आपने आप को महान मुगल सम्राट और इस्लाम प्रिय सम्राट कहलवा चाहता था बाबरी मस्जिद के निर्माण का मुख्य उद्देश्य बाबर के धार्मिक स्थल की स्थापना कर उसे मुस्लिम समुदाय का धार्मिक स्थल बनाना था। मुग़ल बादशाह बाबर ने अपने शासनकाल के दौरान भारत में कई स्थानों पर मस्जिदें बनवाईं, जिनमें बाबरी मस्जिद सबसे प्रमुख थी।
बाबरी मस्जिद का निर्माण विवाद का कारण बन गया है, क्योंकि यह भगवान राम के जन्मस्थान के रूप में प्रतिष्ठित है और हिंदू समुदाय इसे अपनी विरासत का हिस्सा मानता है। बाबरी मस्जिद विवाद ने भारतीय समाज में विभिन्न समूहों के बीच तनाव बढ़ा दिया और परिणामस्वरूप विवाद एक चरण से दूसरे चरण में चला गया।
बाबरी मस्जिद तोड़फोड़:
1992 में एक हिंदू संगठन ने बाबरी मस्जिद को गिराने का प्रयास किया, जिससे भारत में भारी आक्रोश फैल गया। इसके बाद विवाद कानूनी पचड़े की ओर मुड़ गया
विशेषाधिकार कानून: बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद, भारत सरकार ने 1993 में विशेषाधिकार कानून (राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद) बनाया, जिसका उद्देश्य इस मुद्दे को हल करना था।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद 2010 में ऐतिहासिक फैसला लेते हुए बाबरी मस्जिद स्थल की जमीन को हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच न्यायसंगत तरीके से बांट दिया।
जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद फैसला: 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया और यह फैसला हिंदू पूजा स्थल के समर्पण के बदले आया।
परिणाम:
राम मंदिर का निर्माण: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद 2020 में राम मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ. धार्मिक समर्थन और विरोध: इस निर्णय से हिंदू समुदाय के बीच धार्मिक समर्थन तो पैदा हुआ, लेकिन साथ ही कुछ समूहों और व्यक्तियों के बीच मतभेद और आपसी विरोध भी पैदा हुआ।
राम मंदिर मामले में कई बड़े वकीलों ने हिंदू पक्ष की प्रतिष्ठा के अनुरूप अपनी दलीलें पेश कीं और राम जन्मभूमि के लिए सबूत पेश किये. यहां कुछ प्रमुख वकील और साक्ष्य दिए गए हैं:
केकेलाल शर्मा:
केकेलाल शर्मा एक प्रमुख वकील थे जो हिंदू महासभा की ओर से काम कर रहे थे। उन्होंने ऐतिहासिक साक्ष्यों के साथ राम जन्मभूमि स्थल को स्थानांतरित करने के साक्ष्य प्रस्तुत किये और वहां एक हिंदू मंदिर की नींव रखने की मांग की दू महासभा में रहकर राम जन्मभूमि की वकालत की।
पी.ए.बालासुब्रमण्यम:
पी.ए.बालासुब्रमण्यम ने हिंदू महासभा में रहकर राम जन्मभूमि की वकालत की।उन्होंने हिन्दू धरोहर, पुराण, और इतिहास से संबंधित आधारित साक्षायों का समर्थन किया।
डॉ.रघुनाथ पांडे:
डॉ.रघुनाथ पांडे एक अन्य प्रमुख हिंदू वकील थे, जो राम मंदिर के पक्ष में वकालत कर रहे थे। उन्होंने धार्मिक और सांस्कृतिक साक्ष्यों का समर्थन किया और दावा किया कि राम जन्मभूमि पर एक मंदिर स्थित था
डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी:
डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी एक तेज तर्रार और बुद्धिमान वकील रहे हैं, जो राम मंदिर के पक्ष में काम कर रहे थे. उन्होंने आर्थिक और ऐतिहासिक साक्ष्यों का समर्थन करते हुए राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण की मांग की.
कपिल सिब्बल:
कपिल सिब्बल ने कांग्रेस पार्टी की ओर से मामले में मुस्लिम पक्ष की पैरवी की. उन्होंने राम जन्मभूमि के स्थान पर विरोध जताया और वहां मंदिर बनाने के लिए सरकारी पृष्ठभूमि पर हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच सहमति की मांग की। इन वकीलों ने अपने तर्कों और साक्ष्यों के माध्यम से राम जन्मभूमि के पक्ष में खड़े होकर मुकदमे की तैयारी की और इस विवाद को कानूनी दृष्टि से सुलझाने का प्रयास किया।